Sunday, January 28, 2018

९ मन्त्र की शक्ति


यह बात इसवी सन १९१२ की है, उस समय श्री स्वामी का चातुर्मास श्री क्षेत्र चिखलदा में हुवा था. श्री स्वामी की कीर्ति सुनकर दूर –दूर से पंडित, विद्वान, अशिक्षित, अमीर-गरीब व अन्य विभिन्न प्रकार लोग उनके दर्शन करने हेतु वहाँ पर आने लगे थे. स्वामी जी उनकी विभिन्न समस्याओं का समाधान करते थे और समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होने के लिए आवश्यक उपासना व साधना के बारे में भी मार्गदर्शन करते थे.
वहाँ पर एक जागीरदार परिवार की एक महिला श्री स्वामी के दर्शन हेतु आई हुई थी. उस महिला के परिवार की जागीर राजा ने जब्त कर ली थी.
वैसे तो राजा और वर्षा के द्वारा प्राप्त नुकसान व तकलीफों की क्या कही शिकायत होती है ?  पर  वह महिला बड़ी ही आशा के साथ श्री स्वामी की शरण में आई थी.
वह महिला आकर स्वामी जी से कहती है :- “हमें आपसे एकांत में कुछ चर्चा करनी है .”
स्वामी जी कहते है: -“वह कैसे संभव है ? यहाँ-वहाँ सभी दूर श्री हरि व्याप्त है. आपको जो भी कहना है यही पर निःसंकोच होकर कहिये.”
वह महिला अपनी सम्पूर्ण व्यथा सुनाती है.
स्वामी जी कहते है:-“ क्या आपकी भगवान व ब्राह्मणो में श्रद्धा है ?”
सकारात्मक उत्तर मिलने पर स्वामी जी अपने एक ब्राह्मण-भक्त को बुलवाकर अधोलिखित मन्त्र लिखवाते है-

कार्तवीर्यार्जुनोनाम राजा बाहुसहस्त्रवान |
तस्य स्मरणमात्रेण गतं नष्टं च लभ्यते ||

स्वामी जी फिर आगे कहते है :-“यह ब्राह्मण यहाँ नर्मदा तट पर रहकर आपके कार्य की सिद्धि के लिए अगले सवा साल तक जप- अनुष्ठान करेंगे, आपको इनके अन्न, वस्त्र इत्यादि की व्यवस्था करनी पड़ेगी. आगे श्री दत्त महाराज की मर्जी.
जागीरदार परिवार की वह महिला सहर्ष ही अपनी स्वीकरोक्ति दे देती है.
श्री स्वामी की आज्ञा से वह ब्राह्मण अगले सवा साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करके उपर्युक्त मंत्र का अनुष्ठान करते है.
अनुष्ठान अपना रंग दिखाता है, उस महिला के परिवार की जब्त हुई जागीरदारी उन्हें वापस मिल जाती है.
वह महिला श्री दत्तात्रेय भगवान की मूर्ति के आगे एक धन से भरी पोटली रखती है और आगे चलकर यह धन श्री स्वामी के ग्रन्थ-प्रकाशन के काम भी आता है.
साथ ही वह महिला श्री दत्त मंदिर को कुछ चांदी के बर्तन भी भेट करती है और अपनी जागीर में दत्त प्रभु का एक मंदिर बनवाकर उनकी नित्य पूजा की व्यवस्था भी करवाती है.
उस समय होलकर संस्थान के अंतर्गत आने वाले महेश्वर (आज के मध्य प्रदेश में)  में कार्तवीर्यार्जुन मंदिर राज-राजेश्वर नाम से विख्यात है. अपने ग्रंथों में (दत्त पुराण व दत्त महात्म्य) भी श्री स्वामी ने अलग-अलग स्थानों पर विधिपूर्वक  उपर्युक्त मन्त्र के  पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती है, ऐसा उल्लेख करा है.

श्री स्वामी के अनेक भक्तों को इस बात की प्रचिती भी हुई है.

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