इंदौर शहर में दाजी
देशपांडे नाम के एक सज्जन रहते थे. उनके दो पुत्र
थे. पर उनकी पत्नी को ब्राह्य बाधा अर्थात कुछ प्रेतादि आत्माओंका साया
पडगया था. आज का चिकित्सा विज्ञान न तो इन बातों को मानता हैऔर नहीं उसके पास इन
समस्याओं का कोई इलाज है, पर डिस्कवरी जैसी वाहिनियो ने भी अपने कार्यक्रमों में
ऐसी शक्तियों को नकारा नहीं है.
अगर कोई श्रीक्षेत्र
गाणगापुर,जो कि ब्राह्यबाधा निवारण करने का सर्वोच्च स्थान है-जाकर देखता है तो
उसे सहज ही इन शक्तियों के अस्तित्व पर विश्वास करना ही पड़ेगा.अगर सामान्य आदमी
थोडा सा भी गिर जाता है तो उसे चोट लग जाती है, कभी-कभी हड्डीया तक चटक जाती है,
खरोंचे लगती है, रक्त की धारायें बहना शुरू हो जाती है; पर वहाँ गाणगापुर में ब्राह्यबाधा
से पीड़ित व्यक्ति जोर-जोर से अपन सर जमींन पर पटकते है, उँचाई से नीचे कूदते है,
और भी न जाने क्या-क्या करते है, पर उन्हें जरासी भी चोट नहीं लगती है, उनके खून
का एक क़तरा तक नहीं बहता है, हड्डीया चटकना तो दूर की बात होती है.
ये ब्राह्य शक्तिया
अपने पिछले जन्मो के लेन-देन और प्रतिशोध की भावना से ही कुछ पूर्व-संबधित
व्यक्तियों को पीड़ित करती है.
यह विस्तार सिर्फ
ब्राह्य-शक्तियों का अस्तित्व केवल कपोल-कल्पनायें नहीं हैं, यह दर्शाने के लिए
किया गया हैं.
दाजीजी का छोटा बेटा
जिसका नाम बाळ था, वह अपनी माँ की बड़ी सेवा करता था, पर माँ के निधन के बाद बाळ
स्वयं ही ब्राह्यबाधा से पीड़ित हो जाता हैं.उसे हर समय भयानक आकृतिया दिखती है,
उनके डरावने अट्टाहास सुनाई पड़ते है, उनकी भयग्रस्त कर देने वाली क्रीड़ायें दिखाई
देती हैं.अष्टमी, पूर्णिमा और अमावस्या के दिनों में तो स्थिति और भी विकराल हो
जाया करती थी.
बाळ देशपांडे को
श्री नाना महाराज २ मन्त्र लिखकर देते है.
(१) *अनसूयात्रिसंभूतो दत्तात्रेयो दिगम्बरः।। स्मर्तृगामी
स्वभक्तानामुद्धर्ता भवसंकटात्।।१।।*
(२) *अत्रिपुत्रो महातेजो दत्तात्रेयो महामुनि:| तस्य स्मरणमात्रेण सर्वपापैःप्रमुच्यते||*
अगर किसी भी व्यक्ति
को ब्राह्यबाधा हो तो उसे भी इन मंत्रो का पाठ अवश्य करना चाहिए.पर बाळ देशपांडे
को परेशान करनेवाली शक्तिया मंत्र लिखा हुवा यह कागज ही घुमवा देती है.नाना महाराज
कृपा करके पुनः बाळ को उपर्युक्त मन्त्र दे देते है, और साथ ही बाळ का कठोर
साधनाक्रम भी शुरू करवा देते है. बाळ को प्रतिदिन नानादरबार में आना होता था, नाना
महाराज की विभूति को हमेशा ही साथ रखना पड़ता था, त्रिकाल श्रीग्रंथराज गुरुचरित्र
के पाठ करने पड़ते थे. अगले चार सालों तक केवल भुने हुवे सिंगदानेऔर गुड खाकर बाळ अपना
निर्वाह करते है.बाळ देशपांडे भी अनन्यतापुर्वक यह कठोर साधना को अंगीकृत कर लेते
है.
एक बार दत्तसप्ताह
के दुसरे दिन ही दाजी देशपांडेजी का स्वास्थ बिघड जाता है, लगता था मानो अगले कुछ
क्षणों में ही प्राण-पखेरू उड़ जाने वाले हो!
बाळ देशपांडे नाना महाराज के पास जाकर यह सब वृतांत बताकर पूछते है कि कहीं
दत्तसप्ताह में ही पिताजी के प्राण जाने से पारायण अधुरा छोड़ना पड सकता है क्या ?नाना
महाराज बाळ देशपांडे के संग उनके घर आते है, नाना महाराज दाजी देशपांडे के पास
बहुत देर तक बैठते है, और फिर एकदम से बाळ देशपांडे को अनुज्ञा देते है कि पाठ को
पूरा किया जावें.
उधर डॉक्टर महोदय,
दाजी सिर्फ आधे घंटे तक जीवित रहेंगे, ऐसा वक्तन कर दे देते है. पर यमराज भी
वासुदेवस्वामी के शिष्य नाना महाराज के वचन को मानते है, पूर्ण सप्ताह हो जाता है
और दत्तजन्म के निर्विघ्न सम्पूर्ण होते ही दाजी देशपांडे यह इहलोक छोड़ देते है.
इस घटना के बाद बाळ देशपांडे को नाना महाराज का पुत्रवत स्नेह मिलता रहता है.
आगे चलकर एक गाँव
में यज्ञ का आयोजन होता है, बाळ देशपांडे भी नाना महाराज के सानिध्य में वहा पर
सेवा करने के हेतु से मुक्काम करते है.यज्ञ आदि कार्यो में यज्ञशाला का पावित्र्य
बनाये रखना अत्यंत आवश्यक होता है, शास्त्रोक्त विधि से हवन कुंड बनाये जाते है,वहाँ
देवताओं का स्थापन भी किया जाता है. कोई भी वहाँ अपवित्र अवस्था में आकर शुचिता
भंग न करे--इस दृष्टी से बाळ देशपांडे वहाँपर पहरे पर थे. यज्ञस्थल में सर्व देवता
जागृत रूप में रहते है, इसीलिए मान्त्रिक और अन्य वाममार्गी साधना करने वाले लोग ऐसे
स्थानों में अपने मंत्रसिद्ध करने के हेतु से आ धमकते है.
तभी वहा एक व्यक्ति
आकर हवनकुंड के एकदम पास आकर बैठ जाता है, बाळ देशपांडे उसे देखकर टोकते है और
स्पर्श न करने की हिदायत देते है.वह आदमी कुछ भी प्रत्युत्तर न देकर सिर्फ बाळ
देशपांडे की ओर देखता है.लगता था कि बात वही ख़त्म हो गई हो,पर वह तो आनेवाले एक
भयंकर संकट की शुरुवात थी.यज्ञ समाप्त हो जाता है, सब लोग वापस इंदौर आ जाते है.
बाळ देशपांडे भी इस
घटना को लगभग भूल जाते है. बाळ देशपांडे एक महीने भर तक अधिकतर नानानिवास में ही
सेवा के निमित्य रहते थे, और एखाद बार ही अपने स्वनिवास को जाते थे.एक बार वे अपने
घर शयन करने के लिये चले जाते है, नाना महाराज के शिष्य नारायणराव देवता भी उनके
साथ आ जाते है.
मध्यरात्रि के पश्चात्
के ढाई-तीन घंटे बीत जाने के बाद अकस्मात बाळ देशपांडे जोर से चिल्लाते है,
“नानाSSS...यहाँ आइये.....! “
उन्हें किसी भयंकर
रूप के दर्शन हो रहे थे. नारायणराव देवता और बाळ देशपांडे के भाईसाहब को कुछ भी समझ
में नहीं आता है.उधर बाळ देशपांडे चिल्लाते रहते है, “देखिये ! मेरी ओर निम्बू आ
रहे है, भाईसाहब मैं मरने वाला हुँ, जल्दी से नाना महाराज को बुलाकर लाइए.”
वह रात के ढाई-तीन
बजे का समय था, ऐसे समय नानानिवास (उस समय का नाना महाराज का पुराना निवासस्थल
समीप ही था) में जाकर उन्हें कैसे उठाया जा सकता था ?
बाळ देशपांडे जब तक
नाना निवास मे थे तब तक सुरक्षित थे, मानो आभिचारिक शक्तिया उनके नाना निवास से
बाहर आने की ही प्रतीक्षा कर रही थी. बाळ देशपांडे का पूरा शरीर पसीने से भीग उठता
है, उनकें दिल की धड़कने बढ़ जाती है.घर के दरवाजे और खिड़किया सब बंद थे. देवाताजी
करुणात्रिपदी का पठण शुरू कर देते है, वही भाईसाहब ‘घोरात्कष्टात स्तोत्र’ का पाठ
करने लगते है.
उधर बाळ देशपांडे को
लाल धागे से बंधे हुवे निम्बू दिखते है, दरवाजा अन्दर से बंद था पर वे निम्बू बंद
दरवाजे को भेदकर अन्दर आ गए थे . गृह में प्रवेश करने के बाद वे निम्बू अत्यंत
तीव्र गति से बाळ देशपांडे के कानों के पीछे तक चले जाते है पर उन्हें अपने पीछे
कोई खड़ा है ऐसा लगता है, शायद वासुदेवानद
स्वामी लगते है, एक हात में उनके दंड रहता है और दुसरे हात से वे उन अभिमंत्रित
निम्बुओ को पकड़ लेते है.बाळ देशपांडे को यकीन हो जाता है कि श्रीस्वामी ने स्वयं
आकर उनकी रक्षा की है.
पर संकट अभी गया
नहीं था, अबकी बार लाल-धागे से बंधे हुवे नारियल आते है, और इधर दरवाजे पर एक
दस्तक भी सुनाई देती है.भाईसाहब कहते है,
“देवताजी जरा दरवाजा खोलिए .”
इधर बाळ देशपांडे
चिल्लाकर कहते है, “ बाहर मुझे मारनेवाले आये है, दरवाजा न खोलियेगा... “
इतना कहा ही था कि
वे नारियल अत्यंत तीव्र गति से बाळ देशपांडे की तरफ आते है, पर फिर से कोई उन्हें अपने
हातों से झेलकर बाळ की रक्षा करता है.
बाळ देशपांडे करुण
स्वर में पुकारते है, “ नाना महाराज , मेरे रक्षण को आइये ना ....लगता है कि मेरे प्राण लेने कोई आ रहा है..”
दरवाजे पर फिर से
दस्तक होती है. भयंकर आकृतिया सिर्फ बाळ देशपांडे को दिख रही थी, देवताजी और भाईसाहब
को कुछ भी नहीं दिख रहा था, शायद इसीलिए हिम्मत जुटाकर भाईसाहब दरवाजा खोल देते
है, बाहर स्वयं नाना महाराज आये हुवे थे.
नाना महाराज के आते
ही बाळ देशपांडे को दिखनेवाली भयंकर आकृतिया लुप्त हो जाती है, और साथ ही पीछे
रहकर उनकी रक्षा करनेवाली आकृति भी अंतर्धान हो जाती है.
शांत स्वर से नाना
महाराज बाळ देशपांडे को कहते है, “बाळ, निर्भय हो जा बेटा, तेरी पुकार सुनकर मैं अपने
पुत्र व पुत्रवधू तक को न बताते हुवे यहाँ आया हुँ, घर का दरवाजा तक खुला छोड़ आया
हुँ. पर यहाँ साक्षात श्रीवासुदेव स्वामी विद्यमान है, कोई भी तुझे मार नहीं सकता
है. तुझ पर जो-जो वार हो रहे थे, वो सब श्रीस्वामी झेल रहे थे.”
निर्भय होने पर बाळ
देशपांडे कसकर नाना महाराज के श्रीचरण पकड़ लेते है. आगे चलकर नाना महाराज और बाळ
तराना गाँव आते है. वहा एक ग्रामीण व्यक्ति आकर नाना के चरणों में गिर जाता है, वह
नाना के पैर पकड़कर रोता जाताहै.
किसी को कुछ भी समझ
में नहीं आता है. यह वही व्यक्ति था, जिसने यज्ञस्थल में बाळ देशपांडे के टोकने पर
उसपर आभिचारिक प्रयोग करा था.नाना महाराज उसे बोध देते है, “ देखो तुम्हे अभय दे
दिया गया है, पर आगे से ऐसा भयंकर आभिचारिक प्रयोग किसी भी व्यक्ति पर नहीं करना,
यह पागलपन छोड़ दो.”
बाळ देशपांडे का
अरिष्ट नाना महाराज ने अपने ऊपर ले लिया था, जिसके कारण अगले तीन वर्षो तक उन्हें मुख-मार्जन
करते समय मुख से रक्तस्त्राव होता था.
महाभारत काल में
अर्जुन पर भी अस्त्र-शस्त्रों के अलावा अनेक आभिचारिक प्रयोग हुवे थे, जिन्हें
वासुदेव श्रीकृष्ण ने अपने योगबल से रोक रखा था. युद्ध समाप्ति के पश्चात वासुदेव
अर्जुन को अपने से पहले रथ से उतरने की आज्ञा देते है, अर्जुन भी प्रांजलभाव से रथ
पर से उतर जाते है.अर्जुन के उतरने के बाद भगवान स्वयं उतरते है, और भगवान् के
उतरते ही रथ भस्म हो जाता है.
द्वापरयुग में जिस
तरह वासुदेव श्रीकृष्ण ने अर्जुन की आभिचारिक प्रयोगों से रक्षा की थी, ठीक उसी
तरह इस कलियुग में श्रीवासुदेव स्वामी अपने शिष्य के शिष्य- बाळ देशपांडे- की
रक्षा करते है.
यह घटना श्रीस्वामी के
पञ्चभौतिक देह त्यागने के कम से कम ३८ वर्षो बाद घटी हुवी घटना है, जिससे यह सिद्ध
होता है कि सद्गुरु तत्व अमर होता है. “हम गया नहीं जिन्दा है”- यह आधार वाक्य इसी
सद्गुरु तत्व की महत्ता को प्रकट करता है.
No comments:
Post a Comment