श्रीस्वामी अत्यंत
कर्मठ उपासक थे, वेद विद्या व मंत्र विद्या पर उनका पूर्ण अधिकार था. साईबाबा व
श्रीस्वामी एक दूसरे को बंधूँ कह कर संबोधित करते थे. एक बार टेंबेस्वामी
राजमहेंद्री में ठहरे हुआ थे. वहाँ पर नांदेड से आये हुए पुंडलिकराव वकील व उनके
दो मित्र टेंबेस्वामी से मिलने आते है. बातों-बातों में शिर्डी के साईबाबा का उल्लेख होता है, यह नाम सुनते ही टेंबेस्वामी भावुक
होकर बाबा का स्मरण कर हाथ जोड़ते है. सन्यास धर्म के नियमानुसार एक यति ने अपनी
माता व गुरु को छोड़कर अन्य किसी को भी प्रणाम नहीं करना चाहिए, इसी कारण
पुंडलिकराव और उनके मित्रों को विस्मय होता है. स्वामीजी तुरंत स्पष्टीकरण देते है
कि साईबाबा कोई सामान्य व्यक्ति या अवलिया न होकर पूर्ण ब्रह्म नारायण है. पुंडलिकराव
वकील साईं भक्त थे, इसीलिए श्रीस्वामी उनसे ‘शिर्डी कब जाओगे ?’ ऐसा पूछते है.
पुंडलिकराव वकील
‘शीघ्र ही जाऊंगा’ ऐसा उत्तर देते है. साईबाबा परब्रह्म है, ऐसी श्रीस्वामी की
श्रद्धा थी. वे एक श्रीफल (नारियल) को अपने ह्रदय से लगाकर ‘इसे हमारे बंधू
(साईबाबा) को देना’ ऐसा कहकर पुंडलिकरावजी को सौंप देते है. कुछ दिनों बाद पुंडलिकराव वकील व उनके मित्र गण
शिर्डी के लिए प्रस्थान करते है, वे अपने साथ फल,कुछ नारियल व नाश्ता सामग्री भी
ले लेते है; रास्ते में एक नहर के पास सब लोग सुस्ताने के लिए रुकते है, और उन लोगों
के पास जो चिवडा था उसका सेवन करना शुरू कर देते है.
वह चिवडा इतना झन्नाट था कि सब के मुंह मानो जल
उठते है. उन लोगों में से एक व्यक्ति सलाह देता है कि अगर एक नारियल फोड़ कर खा
लिया जाये तो उससे कुछ राहत मिलेगी. सबके मुंह तो जैसे जल ही रहे थे, इसलिए जल्दी
से एक नारियल फोड़कर खा लिया जाता है.
जब सबको कुछ सुकून
मिलाता है तो पता चलता है कि यह तो वही नारियल था जो टेंबेस्वामी ने साईंबाबा के
लिए दिया था, सबको बुरा लगता है पर अब किया भी क्या जा सकता था !
पुंडलिकराव वकील को
साईबाबा के सामने सच बोलने में संकोच होता है, और झूठ तो साईबाबा के आगे टिक ही नहीं
सकता था.
सब सकुचाते हुवे कैसे तो भी हिम्मत जुटाकर साईबाबा के चरण स्पर्श
कर उनके सामने नजरे झुकाकर खड़े होते है.
साईबाबा उनके
आते-आते ही पहला सवाल करते है-“ हमारे भाई ने हमारे लिए दी हुई वस्तु लाओ !”
पुंडलिकराव वकील
दुखी मन से पूरा किस्सा बताते है और बाबा से माफ़ी मांगते है, फिर वे दूसरा नारियल
लाने की बात भी करते है.
बाबा उन्हें रोककर
कहते है-“ अरे... !,दूसरे नारियल से कैसे बात बनेगी ? इस नारियल का मुकाबला हजारों
नारियल भी नहीं कर सकते है, जब हमारे बंधू ने आप लोगों को नारियल दिया था तभी
मानसिक सन्देश से मुझे इस बात की जानकारी दे दी थी. वह नारियल नहीं था, वह हमारे
बंधू का ह्रदय था. याद करो, उन्होंने नारियल किस तरह दिया था !”
पुंडलिकराव वकील को
याद आता है कि श्रीस्वामी ने अपने ह्रदय से लगाकर नारियल दिया था.
साईंबाबा फिर सबसे
कहते है- “अरे, अपने बच्चों ने नारियल खाया इसलिए बाप कभी नाराज होता है क्या? तुम
सब तो मेरे ही बच्चे हो, पर विश्वासपूर्वक दी गई अमानत को संभाल कर लाने के बजाय
तुम लोगों ने अत्यंत लापरवाही भरा वर्तन करा. यह तो कुछ भी नहीं, ऊपर से ‘दूसरा
नारियल ला देते है’ ऐसा अभिमान पूर्वक वचन भी बोला. पुंडलिकराव वकील को अपनी गलती
समझ में आ जाती है और आध्यात्मिक शिखर पर पहुंचे हुवे संत किस तरह आपस में संवाद
साधते है, इस बात की उन्हें प्रचिती भी हो जाती है.
साईबाबा व
श्रीस्वामी मन की शक्ति से एक-दूसरे को सन्देश भेज सकते थे क्योंकि वे मन से एकरूप
हो गए थे. मन की शक्ति से क्या-क्या हो सकता है, इस बात का यह उदाहरण है. आज हमारे
मोबाइल के नेटवर्क फेल होते रहते है पर संतों के नेटवर्क आदिकाल से बिना किसी
समस्या के चल रहे है. आज साईं भक्ति को लेकर व्यर्थ विवाद खड़े किये जा रहे है, पर
कम से कम टेंबे स्वामी के भक्तों को निशंक होकर साईंबाबा में श्रद्धा रखनी चाहिए.
इस दृष्टांत का यह उपदेश इन दिनों में अत्यंत प्रासंगिक है.
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