Sunday, December 31, 2017

3 जाको राखे सद्गुरु

उस समय जब टेंबे स्वामी नृसिंहवाड़ी में आये हुवे थे, तब वहाँ एक वैदिक परिवार की सुहागन स्त्री उनके दर्शन को आती थी. एक दिन उस महिला के मन में विचार आता है कि जहां स्वामीजी विराजमान होते है वहाँ की चरण-धूली को अगर वह अपने गाँव में ले जाकर अपने खेत की बागड़ के चारों ओर भूमि में अनाज की तरह बो देती है तो उसके खेत लहलहा उठेंगे, अच्छी पैदावार भी आएगी.
उस महिला की इच्छानुसार वह स्वर्ण-दिवस आता है जब स्वामीजी मठ में ना बैठकर औदुम्बर के वृक्ष के नीचे बैठकर कुछ लेखन कार्य कर रहे थे, आसपास भक्तों की भी भीड़ भी नहीं थी, वह महिला आगे बढकर स्वामीजी को दंडवत प्रणाम करती है.
अंतर्यामी स्वामीजी प्रसन्न मुद्रा में अपना शीश उठाकर प्रेम पूर्वक बोलते है  :-“चरण रज चाहिए ना ? ले लो.”
यह सुनकर वह महिला आगे बढ़ाकर श्री चरणों  के पास की चरण-धूल उठाकर श्रद्धा से अपने मस्तक पर लगाकर अपने पल्लू में बांध लेती है, फिर वह श्रद्धा से अपना मस्तक स्वामी चरणों में नवाती है. अपने गाँव पहुँचकर वह महिला स्वामीजी की चरण रज को अपने खेत के चारों ओर अत्यंत श्रद्धा पूर्वक बो देती है.
कुछ समय बाद उस क्षेत्र में हर जगह अति-वृष्टि होती है पर इस महिला के खेतों के ऊपर कुछ हलके बादल ही आते है और हलकी वर्षा होने के कारण खेत को कोई विशेष हानि भी नहीं पहुँचती है.
श्रीगुरुचरित्र में भी एक घटना आती है जिसमें एक पर्वतेश्वर नामक किसान नृसिंह सरस्वती जी के कहने पर अपनी फसल को समय से पहले  ४ अंगुल छोड़कर काट देता है व इस बात पर पूरा गाँव उसकी खिल्ली उडाता है, पर वह किसान अपने गुरु भक्ति के कर्तव्य का पालन कर अचल रहता है.
कुछ दिनों बाद गाँव में मूसलाधार वर्षा होती है और सब लोगों की फसलें ख़राब हो जाती है पर इस गुरु भक्त किसान के खेत में ज्वार के अनगिनत अंकुर फूटते है और उसे १००-गुना पैदावार मिलती है जिसका एक बड़ा हिस्सा वह गाँववालों और दिन-दुखियों में बाँट देता है.

संयोग से, उन्हीं नृसिंह सरस्वती जी के नाम पर से नामकरण हुई नृसिंहवाड़ी में उपर्युक्त घटना घटती है.  गुरुकृपा किसी स्थान विशेष पर आये संकट से अपने भक्तों की किस प्रकार रक्षा करती है, इस बात का यह दिव्य उदाहरण है.

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