श्रीक्षेत्र
गरुडेश्वर में एक ही समय अनेक भक्तजन श्रीस्वामी के सम्मुख बैठे हुवे थे.
उस समय श्री स्वामी
एक भक्त से पूछते है:-“ आपकी लड़की विवाह योग्य हो गई है न ? कही उसका रिश्ता तय कर
दिया है क्या ?”
वह सज्जन कहते है
:-“ महाराज, बड़े ही प्रयत्न हम कर रहे है, पर दिन बड़े ही कठिन आ गए है ! कही पर भी
कोई अच्छा रिश्ता नहीं दिखता है.”
फिर श्रीस्वामी
पूछते है :-“ क्या-क्या प्रयत्न करेहै, जरा
हमें भी तो बताओ ?”
इस पर स्वामीजी कहते
है:-“ अरे! कल का ही एक किस्सा मैआपको बताता हूँ,यहाँ पर एक दत्त भक्त सज्जन आये थे. उन्होंने सपत्नीकश्री
दत्त प्रभु के चरणों में बैठकर पुजन आदि
संपन्न कर के सभी भक्तों के लिए भोजन प्रसादी भी बनवाई थी.
इस भोजन प्रसादी के
वितरण के पहले सुहागन स्त्री, विप्र व ब्राह्मण-दंपति (मेहूण)को
पहले जिमाया जाता है. भोजन कर चुके ब्राह्मण-दर्पित के ब्राह्मण देवता कहते है:-“
मुझे वैद्य जी ने सुरण (जिमीकंद) की सब्जी खाने को बोला था, पर हमारे क्षेत्र में
सुरण मिलता ही नहीं है. यहाँ पर मुझे सुरण की सब्जी खाने को मिली, इसका पुण्य
भोजन-प्रसादी का आयोजन करने वाले यजमान को मिले .”
इतना कहकर श्री
स्वामी कहते है:-“ अरे, ये कैसे संभव हुवा होगा ? उस भोजन-प्रसादी का आयोजन करने
वाले सज्जन को सुरण की ही सब्जी (जो की ब्राह्मण देवता के लिए पथ्य कारक थी)
बनवाने की क्यों सूझी होगी ?”
लड़की के पिता ने
ईमानदारी से उत्तर दिया कि वह इस बात का उत्तर नहीं दे सकते है.
इस पर श्रीस्वामी
आगे कहते है-“ अरे सबके ह्रदय में एक ही मूर्ति वास करती है,और धर्माचरण से
शुद्ध हुवे ह्रदय में यह मूर्ति स्फूर्ति देती है, और तार (टेलीग्राम-
उस समय यह ही सबसे तेज सन्देश पहुंचाने का साधन था ) के समान हर
जगह सन्देश पहुँच जाता है.
उस ब्राह्मण देवता
का ह्रदय शुद्ध था, उनकी आवश्यकता सुरण की है, यह सन्देश जहाँ-जहाँपहुँचना
चाहिए वहाँपहुँच गया और उन ब्राह्मण देवता का कार्य सहज ही बन गया.”
वेदांत की गंभीर बातें
स्वामीजी कितने सहज ढंग से समझा देते थे !
अपने ३०-४०
व्यक्तियो के कुटुम्ब को व्यवस्थित
रूप चलाने वाली एक विधवा
महिला को पेट दर्दकी शिकायत रहती थी, इसके उपचार के लिये वह् पान मे तंबाकु डालकर
सेवन करती थी. एक दिन स्वप्न मे उसे श्रीस्वामी
दर्शन देते है, स्वप्न मेंही वह् महिला श्रीस्वामी को साष्टांग दण्डवत
करके अपने पान खाने के लिये माफीमांगती है. उस समय विधवा महिलाये पान न खाने के नियम का कटाक्ष से पालन किया करती थी.
इस पर स्वप्न में ही स्वामी
महाराज मुस्कुरा
कर उत्तर देते है-“पर आपके लिये तो वह औषधि है....”
स्वप्न हो या प्रत्यक्ष
स्वामी महाराज अपने भक्तों पर अकारण कोई भी नियम या उपासना लादते नहीं थे. आजकल दीक्षा
देने वाले कई बाबा अपने भक्तों से एखाद भोज्य-वस्तु छुड़वा देते है. आजकल के शिष्य भी कुछ दिनों तक उस
नियम का पालन करते है, उसके बाद फिर से उस त्यागी हुई वस्तु का सेवन प्रारंभ कर
देते है, जो कि कतई उचित नहीं होता है. स्वामी महाराज अपने शिष्यों पर ऐसा कोई भी
नियम नहीं लादते थे जो आगे चलकर शिष्य निभा ना पाए. वे हमेशा शिष्य की पात्रता व
मानस देखकर ही उपासना आदि बताते थे.
आगे चलकर इस महिला
को गरुडेश्वर मे गुरु पूर्णिमा के निमित्य श्रीस्वामी
के दर्शनो का लाभ मिलता है व दत्तजप भी प्राप्त होता
है.
कुछ वर्षों बाद यह
महिला गुरु पूर्णिमा की तिथि को ही अपना पञ्च-भौतिक देह त्याग देती है.
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