टेम्बे स्वामी के योगमार्गी शिष्यों में एक प्रमुख शिष्य
श्री गांडा महाराज (प.पू. श्री योगानंद सरस्वती ) थे, तेलंगपुर के ये गुजराती ब्राह्मण बचपन से ही
विरक्त स्वभाव के थे और सद्गुरु की खोज में नर्मदाजी के किनारोंपर भटक रहे थे. यद्यपि उनका बाल विवाह हुवा था फिर भी गृह त्याग
कर सद्गुरु की खोज में भटकने के कारण उन्हें लोग ब्रह्मचारी कहते थे.
‘एक ब्राह्मण सद्गुरु मिले’ ऐसी उनकीमनोकामना थी.
नर्मदाजी के तट पर वास करने वाले पांडुरंग महाराज नामक एक
सत्पुरुष की आज्ञा से वे नेमावर -जो की माँ नर्मदा का नाभि स्थलहै- में जप-अनुष्ठान करने लगे थे.
इसी दौरान श्री स्वामी की कीर्ति उनके कानों में पड़ती है और
वे टेम्बे स्वामी से मिलने शिनोर चले आते है.
उनके आने से पहले ही अंतर्ज्ञानी टेम्बे स्वामी रामशास्त्रीजी
से कहते है,” जल्दी ही यहाँ एक भटकने वालाअक्षर शत्रुव्यक्ति आने वाला है. ”
गांडा महाराज के आने पर तो ८ दिनों तक श्री स्वामी बात तक
नहीं करते है, परगांडा महाराज भी अपनी धुन के पक्के थे.
वे रोज सुबह स्नान करके श्री स्वामी के वासस्थल पर आकर बैठ
जाते, श्री स्वामी भिक्षा
के लिए जब निकलते तब गांडा महाराजभी इधर उधर जाकर अपनी क्षुधा पूर्ति कर श्री
स्वामी के लौटने से पूर्वही अपने स्थान पर विराजित हो जाते थे.
आखिर टेम्बे स्वामी पूछते है,” आप यहाँ किस उद्देश्य से बैठे रहते हो ?”
“आपकेसमर्थ चरण ही मेरा उद्धार करने में समर्थ है”ऐसा करुण उत्तर गांडा महाराज देते है.
कुछ समय तक गांडामहाराज को अपना सहवास-लाभ करवाकर, श्रीस्वामी उन्हें निकोदा गाँव ले जाते है.वहाँश्रीस्वामी उन्हें योग मार्गके तत्व समझाकर शंकरजी
के मंदिर में योग-साधना करने की आज्ञा देते है.
श्री स्वामी फिर कहते है, “ श्रद्धा के अनुरूप शंकर परमात्मा आपको फल देंगे.”
साधना पूर्ण कर गांडा महाराज पुन: स्वामी दर्शन को आते है.
टेम्बे स्वामी उन्हें पहले जाकर उनके माता-पिता की क्षमा मांगने को कहते है,तत्पश्चात उनकी (माता-पिता की ) आज्ञा से चातुर्मास के समय द्वारका में आकर मिलने
को कहते है.
आगे चातुर्मास के समय गांडा महाराज द्वारका आकर श्री टेम्बे
स्वामी को अपने माता-पिता द्वारा रखी गई शर्तें जैसे -माता-पिता के मृत्यु के समय उनके साथ रहना वउनका
और्धदैहिक करना,अपनी पुत्री(गांडाबाबाकी) की शादी करवाना इत्यादि- के बारे में बताते है.
श्री स्वामी ‘श्रद्धा के अनुसार कार्य होते जायेंगे’ ऐसा आशीर्वाद दे देते है.
दो सालो के बाद टेम्बे स्वामी गांडा महाराज को गुना छावनी
के डॉक्टर ताटकेके यहाँ जिव्हा-छेदन के लिएभेजते है, श्री स्वामी की कृपा से यह कार्य उत्तम रूप से
संपन्न होकर गांडा महाराज की खेचरी मुद्रा सिद्ध हो जाती है.
यह देखकर टेम्बे स्वामी के अन्य दो शिष्य भी डॉक्टरताटके के
यहाँ जाकर अपना जिव्हा-छेदन करवा लेते है.
डॉक्टर तो केवल एक माध्यम होता है असली शक्ति तो सद्गुरु
कृपा होती है, इसबात से अनभिज्ञ दोनों साधकों का शस्त्र क्रिया के दौरान
भयानक रक्तस्राव होने लगता है और श्री स्वामी को तार (टेलीग्राम) भेजकर बुलाना पड़ता है.
स्वामीजी वनस्पति प्रयोग से संकट तो टाल देते है पर उन
दोनों साधकों का मनोगत अपूर्ण ही रह जाता है.
यही बात भक्ति को योग मार्ग से विशेष बनाती है, गुरु बिना भीभक्ति तो फलदायी हो सकती है पर योग मार्गमें लेने के देने भी पड सकते है.
व्रज की गोपियों को कौनसे गुरु ने बताया था कि श्रीकृष्ण के
प्रति भाव रखो?
यह बात जरूर है कि सद्गुरु के सानिध्य में भक्ति दिन-दुगनी और रात-चौगुनी बढती है पर आज के युग में जहाँ सद्गुरु
कम और भोंदू बाबा ज्यादा मिलते है वहाँ साधारण साधक को तोभक्ति मार्ग पर ही चलना
चाहिए.
संत रामदासजीने कहा है कि जैसे बाग़ में फल पकने पर पक्षियों
को न्यौता देने नहीं जाना पड़ता है वैसे ही आध्यात्मिक उन्नति के होने पर सद्गुरु
स्वयं ही अपने शिष्य को ढूंढतेहुवे आ जाते है.
गांडामहाराज से टेम्बे स्वामी ने १ लाख गायत्री का जप भी
करवाया था औरसन्यास के बाद श्री गांडा महाराज ‘योगानंद सरस्वती ‘ इस नाम से जाने जाते थे.
गांडा महाराज की समाधिमराठवाडा के गुंज नामक स्थान पर है.
No comments:
Post a Comment