मुंबई के एक स्नातक
व्यक्ति अच्छी सरकारी नौकरी में थे, उनके दिन बड़े मजे में कट रहे थे, पर अचानक वे बीमार पड जाते है.
यह इसवी सन १९११ की
घटना है. मित्रों ने सलाह दी कि पुणे की आबोहवा अच्छी है, वहाँ जाकर आपका स्वास्थ्य
सुधर जायेगा.
फिर क्या वह सज्जन
परिवार सहित पुणे आ गए और उन्हें शनिवार पेठ में एक आरामदेह भवन उन्हें रहवास करने
के लिए मिल गया. पुणे में आकर उनका स्वास्थ्य तो
ठीक हो गया पर उन्हें हर पल मृत्यु के समीप आने का आभास होता था, मृत्यु के
भय से वे सदा ग्रसित रहते थे, वे अकसर “ मैं मर जाऊंगा.... मैं मर
जाऊंगा....” ऐसा बोलते रहते थे. उनकी ऐसी
बाते सुनकर उनके घरवाले अत्यंत चिंतित हो जाया करते थे. डाक्टर भी आकर स्वास्थ्य-परीक्षण
कर के जाते थे पर कोई भी रोग उनकी पकड़ में नहीं आता था. उनके पड़ोस के घर में
दत्त-उपासना की रीत थी, इन बीमार सज्जन के कानों पर भी करुणा-त्रिपदी के शब्द पड़ते
है. शब्द सुनते ही यह सज्जन तरो-ताज़ा महसूस करने लगते है.